ब्रजेश्वरी देवी- कांगड़ा बाजार से 100 मीटर की दुरी पर प्रसिद्ध शक्तिपीठ ब्रजेश्वरी मंदिर स्थित है। इसकी गिनती इक्कावन (51) शक्ति पीठों में होती है। यक्ष प्रजापति के यक्ष में जब सती ने अपने शरीर का आत्मदाह कर दिया था तो क्रोधित शिव ने सती के शरीर को उठाकर तांडव किया तो पृथ्वी की तबाही को देखकर देवताओं के निवेदन पर ब्रह्राा ने सती के शरीर के टुकड़े कर दिए थे। धारणा है कि यहां पार्वती जी का वक्ष गिरा जिसके कारण ब्रजेश्वरी नाम से यहां देवी प्रकट हुई। मंदिर निर्माण के समय से 360 देवियों यहां आई और विधिपूर्वक मंदिर निर्माण हुआ। कांगड़ा की संरक्षिका ब्रजेश्वरी मंदिर का निर्माण लगभग सातवीं शताब्दी में हुआ। इस मंदिर की मान्यता 11 वीं शताब्दी में चरम सीमा पर थी जब यहां देश के कोने-कोने सी आए लोग सोना और चाँदी चढ़ाया करते थे। मंदिर के यश और वैभव के कारण महमूद गजनवी ने 1009 में मंदिर को लूटा! वह सात लाख सोने की मोहरें, सात सौ मन सोने और चांदी के बर्तन, सात सौ मन की छाड़ियां, दो हज़ार मन चांदी की छडें और दो हज़ार मन हीरे-मोती और अन्य कीमती गहने लूट कर ले गया। फरिश्ता लिखता हैं कि मेहमूद गजनवी ने इस दौरान 100 गायें भी क़त्ल कराई।
1360 ई. में सम्राट फ़िरोज़शाह तुगलक ने कांगड़ा पर आक्रमण किया और मंदिर को क्षति पहुंचाई। तुगलक के बाद शेरशाह सूरी के सेनापति ख्वास खान ने 1540 ई. में मंदिर पर आक्रमण किया और मंदिर लूट। युरोपियन यात्री विलियम पिंच ने 1611 ई. के अपने यात्रा वृतांत में मंदिर का उल्लेख किया है परन्तु उसने देवी का नाम नगरकोट देवी कहा है।
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